शुक्रवार, 25 सितंबर 2015

मध्यप्रदेश पीसीसी से उठा सवाल क्या वाकई कांग्रेस धर्म निरपेक्ष है?

                               - सतीश एलिया

क्या कांग्रेस वाकई धर्म निरपेक्ष पार्टी है? यह सवाल जिस शिद्दत से आजादी के आंदोलन के वक्त उठता रहा था, उससे कहीं ज्यादा जवाब तलब प्रश्न अब बनता दिख रहा है। उस वक्त कांग्रेस को हिंदुओें की जमात प्रचारित कर मुस्लिम लीग न केवल ताकतवर बनी बल्कि देश का बंटवारा करवाकर ही मानी। हाल ही में महाराष्टÑ में पयुर्षण पर्व पर मांस बिक्री पर प्रतिबंध लगाए जाने और उसके बाद पंजाब और छत्तीसगढ़ सरीखे राज्यों में अनुकरण किए जाने से धर्म निरपेक्षता पर नई बहस शुरू हुई है, हालांकि कोर्ट ने भाजपा के बहुमत वाली महाराष्टÑ सरकार की मंशा को खारिज कर दिया लेकिन बहस अब भी जारी है। इसमें अंदरूनी विवाद भाजपा-शिवसेना-मनसे के बीच वोट बैंक का भले हो लेकिन सवाल संविधान में दी गई धार्मिक स्वतंत्रता और पंथ निरपेक्षता की सियासत को लेकर भी उठ रहे हैं। ऐसे में मध्यप्रदेश में कमजोर विपक्ष साबित हो रही कांग्रेस के अपने घर में धर्म निरपेक्षता का सवाल एक अलग ही अंदाज में पैदा हुए विवाद से सामने आया है। भारतीय जनता पार्टी के कार्यालयों और कार्यक्रमों में हिंदुओं की पूजा पाठ और पर्व मनाए जाने की ही तर्ज पर कांग्रेस कार्यालयोें में भी यही परंपरा शुरू हुई है। भोपाल के प्रदेश कांग्र्रेस कार्यालय जिसे इंदिरा भवन कहा जाता है, गणेशोत्सव मनाए जाने पर अब तक किसी ने सवाल नहीं उठाया था, लेकिन सचिव स्तर के एक पूर्व पदाधिकारी ने बकरीद मनाने का ऐलान कर समूची कांग्रेस में सवाल को भूचाल सा बना दिया है। इस पूर्व पदाधिकारी हैदरयार का सवाल है कि अगर कांग्रेस धर्म निरपेक्ष पार्टी है और गणेशोत्सव इत्यादि मनाती है तो बकरीद के मौके पर बकरे की कुर्बानी वहां क्यों नहीं दी जा सकती। यह विवाद अब प्रदेश कांग्रेस के गुटीय विवाद से ऊपर उठकर राष्टÑीय स्तर पर कांग्रेस के लिए सवाल के रूप में सामने आने को बैचेन है। वह भी ऐसे वक्त में जब पार्टी के युवराज राहुल गांधी उपाध्यक्ष के तमगे से ऊपर उठकर पार्टी की अध्यक्षता सम्हालने के लिए बैचेन हैं। वे पार्टी के देश के लगभग हर राज्य में लगातार खराब प्रदर्शन की जिम्मेदारी लिए बगैर उसे फिर से सर्व स्वीकार्य बनाने के प्रयास में जुटे हैं। सोमवार को मथुरा में उन्होेंने चिंतन शिविर में पार्टी को एप्पल कंपनी की तरह चलाने की मंशा भले जताई हो वे बांके बिहारी मंदिर गए और भाल पर केसर तिलक लगवाकर बाहर निकले। राजनीतिक प्रेक्षक इसे कांग्रेस की हिंदुओं में उसकी स्वीकार्यता को फिर कायम करने की दिशा में उठाया गया कदम तक बता रहे हैं। ऐसा ही कदम उठाकर उनके पिता राहुल गांधी ने अयोध्या में विवादित स्थल पर पूजा के लिए ताले खुलवाए थे। यह बात और है कि उनका यह कदम बाद में बाबरी विध्वंश, भाजपा के उभार और कांग्रेस के हाशिए पर खिसकते जाने का आधार भी बना। कांग्रेस की धर्म निरपेक्षता पर उठी संदेह की उंगलियोंं ने धीरे धीरे भाजपा को लोकसभा में अपने बूते बहुमत लाने तक और कांग्रेस को 44 के उस आंकड़े तक धकेल दिया जिसमें वह मान्यता प्राप्त विपक्ष भी नहीं बन पाई। ऐसे वक्त में जब पांच साल पहले बिहार चुनाव में अपने पहले चुनाव टेस्ट में फेल साबित हुए राहुल गांधी एक बार फिर बिहार के साथ ही किसी जमाने में कांग्रेस की सबसे मजबूत जमीन उप्र में बहुसंख्यकों को रिझाने की कोशिश शुरू कर रहे हैं, मप्र में धर्म निरपेक्षता के सवाल ने नए अंदाज में दस्तक दी है। देखना ये है कि मप्र में प्रदेश कांग्रेस कार्यकारिणी के असंतुलन से पैदा हुआ और धर्म निरपेक्षता के सवाल तक जा पहुंचा विवाद पार्टी में किसी नई बहस या आत्ममंथन की तरफ जाएगा या फिर कांग्रेस जिस रास्ते पर जा रही है, उसी पर चलती जाएगी। जाहिर है बकरीद पर प्रदेश कांगे्रस दफ्तर में उठे कुर्बानी के इस विवाद ेसे लगातार चुनावी जीत दर्ज कराती जा रही भाजपा के लिए यह प्रसन्नता का कारण ही बनेगा, भले ही वह जाहिर तौर पर इसे जताए न।