बुधवार, 27 नवंबर 2013

chunav prachar smapti ke baad


ntijon ka intzar


बुधवार, 12 जून 2013

मैं ज्ञान रहित लोगों के प्रश्नों के उत्तर नहीं देता

संयुक्त मध्यप्रदेश यानी छत्तीसगढ सहित मध्यप्रदेश और सिर्फ छत्तीसगढ राज्य के शीर्ष कांग्रेस नेता विद्याचरण शुक्ल यानी वीसी यानी विद्या भैया का अवसान हो गया। नक्सली हिंसा का शिकार वीसी शुक्ल अपने अंतिम दिनों में भले छोटे से राज्य छग के एक गुट के नेता रह गए हों लेकिन एक जमाना था जब वे कांग्रेस में देश के सबसे ताकवर आधा दर्जन नेताओं में शुमार होते थे। इंदिरा संजय गांधी और आपातकाल के दौर में वे कांग्रेस के सर्वशक्तिमान समूह में शामिल थे। नौ बार सांसद रहे, कई दफा केंद्रीय मंत्री कांग्रेस में भी और कांग्रेस से बाहर होकर भी मंत्री रहे। अपना खुद का एक मोर्चा बनाया जनता दल का दामन थामा, यहां तक कि भगवा दल भाजपा में भी गए और शीघ्र ही अपने घर कांग्रेस में लौटे। बतौर पत्रकार मेरा वास्ता विद्या भैया से उस वक्त रहा जब में दैनिक नई दुनिया में राजनीतिक रिपोर्टर था। भोपाल में उनके गुट के कार्यकर्ता नेता और भोपाल आगमन पर वीसी हमारे न्यूज सोर्स थे। वे आॅफ द रिकार्ड बातचीत में जितने बेबाक थे, आॅन रिकार्ड बातचीत में उतने ही सधे हुए और संतुलित। वर्ष 1997 या 98 का एक वाकया आज बरबस याद आ रहा है। मेरे तत्कालीन पत्रकार मित्र पंकज पाठक नवभारत में थे। कांग्रेस या भाजपा को कोई केंद्रीय नेता या मंत्री भोपाल आता तो हम उनसे मिलने खबर की तलाश में जाते थे, कई दफा अकेले अकेले और कई दफा साथ साथ। एक दिन वीसी भोपाल आए और लेक व्यु अशोक में रूके थे। हमने उनसे संपर्क किया तो उन्होंने पाठक जी और मुझे रात के भोजन पर बुलाया। वीसी के कक्ष में हम तीन ही थे और भोजन कर रहे थे। खुद बहुत कम और संतुलित भोजन लेने वाले विद्या भैया अपने अग्रज मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री पं. श्यामाचरण शुक्ल यानी श्यामा भैया की तरह आतिथेयों को मनुहार कर करके ख्ूाब खिलाने वाले थे। खैर हम भोजन कर रहे थे, तभी अचानक एक बिन बुलाए मेहमान आ गए। वे उस वक्त पत्रकार की हैसियत से आए थे, हालांकि वे एक कांग्रेस के बागी हुए निर्दलीय विधायक के खासम खास हुूआ करते थे। जो इन दिनों भी कांग्रेस के विधायक हैं। यह साब इन दिनों एक धार्मिक संगठन के सदर भी हैं। हुआ यह कि आफ द रिकार्ड बातचीत में विद्या भैया ने कई बातें बताई। इसी सौजन्य बातचीत में इन साहब ने एक सवाल वीसी से दलबदल को लेकर पूछ लिया, उसमें भी तथ्यात्मक त्रुटि थी। इस असहज सवाल से वीसी न केवल असहज हो गए बल्कि नाराजी उन्हें चेहरे पर साफ दिखी। हम दोनों भी चुप। चंद सेकंड की खामोशी के बाद विद्या भैया ने धीर गंभीर सुर में कहा मैं ज्ञान रहित लोगों के प्रश्नों के उत्तर नहीं देता। आज जब मैं देखता हूं कि कांग्रेस के राष्टीय नेता हों कि बीजेपी के, पत्रकार जब उनसे ऐसे ही ज्ञान रहित प्रश्नों की छडी लगाते हैं, तो वे उन्हें इस तरह चुप नहीं करा पाते। आयोजक भी शर्मसार होते हैं और ऐसे पत्रकार अगली प्रेस कांफ्रेंस में फिर ऐसे ही सवाल किसी और नेता से पूछते हैं। अब जबकि वीसी शुक्ल की पार्थिव देह पंचतत्व में विलीन होने जा रही है, मुझे उनकी धीर गंभीर वाणी अब भी जेहन में सुनाई दे रही है मैं ज्ञान रहित लोगों के प्रश्नों के उत्तर नहीं देता। विद्याचरण शुक्ल को मेरी श्रद्धांजलि।

मंगलवार, 4 जून 2013

new horizon


मित्रों साढे 11 बरस दैनिक भास्कर में रिपोर्टर सीनियर रिपोर्टर विशेष संवाददाता और स्टेट ब्यूरो प्रमुख जैसे दायित्व निभाने के बाद अब पत्रकारिता और कॅरियर में नई भूमिका निभाने का मौका आया है। अपने करीब 22 साल के कॅरियर में मेरा चैथा संस्थान है। इसके पहले तीन अखबारों देशबंधु नई दुनिया और नवभारत में कुल मिलाकर 11 बरस पत्रकारिता की। बाइस लंबे बरसों में कदम कदम लोगों का सहयोग एप्रिशिएशन मिलता रहा। भास्कर के कार्यकाल में संस्थान के भीतर चार प्रमोशन और आधा दर्जन पुरस्कार मिले। संपादकों से एप्रिशिएशन लेटर भी मिले। संस्थान से बाहर चार उल्लेखनीय सम्मान और पुरस्कार मिले। पत्रकारिता से इतर लेखन को भी प्रसंशा मिली। अब हिंदी पत्रकारिता के एक और बडे संस्थान राजस्थान पत्रिका समूह से जुड रहा हूं बतौर एसोसिएट एडिटर। भोपाल में ही रहूंगा।

गुरुवार, 18 अप्रैल 2013



विजय शाह के बहाने एक तीर से कई निशाने
                                         - satish aliya
 सार्वजनिक मंच से फूहड भाषण देने के जुर्म में आदिवासी राजकुमार कंुवर विजय शाह का मंत्री पद कलम कर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है।  पहला तो ऐसे मंत्रियों की जुबान पर लगाने की कोशिश की है जो राजनीति में अपनी दम पर न केवल हैं बल्कि मुख्यमंत्री की नियंत्रण परिधि में नहीं आते, और न ही मुख्यमंत्री के प्रसाद के कारण मंत्री पद पर बरकरार हैं, उनका उर्जा स्त्रोत संघ परिवार में कहीं और है। विजय शाह अपनी दम पर विधायक और मंत्री बनने वाले भाजपा नेता जरूर हैं लेकिन वे उन मंत्रियों की फेहरिस्त में नहीं थे जो मुख्यमंत्री को खास तवज्जो नहीं देते। एक अर्थ में शाह मोहरे बन गए, अपनी बदजुबानी के कारण। यह महज संयोग ही है कि दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में भी एक आदिवासी मंत्री दयाल सिंह तुमराची के मंत्री पद की बलि ली गई थी। उन्हें छह हजार रूपए लेने के आरोप में मंत्रिमंडल से रूखसत किया गया था। शिवराज सिंह चैहान न तो दिग्विजय सिंह की तरह ठाकुर नेता हैं और न ही पूर्व सामंत। लेकिन आदिवासी मंत्री को हटाने के मामले में वे उनकी बराबरी पर तो आ ही गए हैं। जैसे शिवराज और दिग्विजय बराबरी के नेता नहीं हैं उसी तरह आदिवासी होते हुए भी विजय शाह दयाल सिंह तुमराची जैसे नहीं हैं। तुमराची सियासत के नेपथ्य में चले गए थे, कंुवर विजय शाह नहीं जाएंगे। यह उन्होंने मंत्री पद से हटते ही जाहिर भी कर दिया। उनके तेवर इस्तीफा देने की मजबूरी में आंसू बहाने के बाद अब तीखे हो गए हैं। देखना यह है कि विजय शाह का मंत्री पद कलम कर शिवराज बाबूलाल गौर, कैलाश विजयवर्गीय, गोपाल भार्गव, अनूप मिश्रा जैसे तेजतर्रार और दो टूक बोलने वाले और अपनी दम पर क्षेत्र में प्रभाव रखने वाले नेताओं को चुप्पी की मुद्रा में ला पाएंगे। विजय शाह के बहाने कांग्रेस भाजपा के अन्य तेज तर्रार नेताओं को घेरने की कोशिश भले कर रही हो लेकिन उसे इस मुददे का कोई सियासी लाभ होने की उम्मीद नहीं रखना चाहिए, क्योंकि कांग्रेस की मांग के बाद ही शिवराज ने एक आदिवासी मंत्री को घर बिठा दिया। इससे आदिवासियों के बीच पहले ही कमजोर साबित हो चुकी कांग्रेस को कोई बल नहीं मिलने वाला। विजय शाह प्रकरण भाजपा के अंतःपुर में मची रार के बीच एक तात्कालिक बदलाव का कारण जरूर बनता दिख रहा है। वो ये कि उमा भारती और प्रभात झा को राष्टीय उपाध्यक्ष बनाने, शिवराज के बजाय मोदी को संसदीय बोर्ड में लेने से फीकी पडती दिख रही शिवराज तोमर की जुगलबंदी को कुछ चमक फिर से मिल गई है। लेकिन संगठन के स्तर पर जो कमजोरी अंदर ही अंदर पनप रही है, वह इस चमक को ज्यादा देर प्रभावी नहीं रहने देगी। भाजपा की ताकत संगठन ही रही है लेकिन मप्र में यह फिलहाल सत्ता के प्रभाव में है, सत्ता ही संगठन चला रही है न कि संगठन सत्ता को यह संदेश लगातार गहरा रहा है। चुनाव सरकार को नहीं संगठन को लडना है, चुनाव आयोग के डंडे का घूमना शुरू होते ही सरकार का संगठन को चलाना भारी पड सकता है। देखना ये है कि अगले छह महीनों में भाजपा की सत्ता और संगठन में क्या और गुल खिलते हैं, और वे चुनाव में क्या असर दिखाते हैं, कांग्रेस भाजपा की तरफ उम्मीद की निगाह से देख रही है, क्योंकि उनके यहां तो गुटबाजी ही पार्टी की पहचान है, एकता तो मंचों के लिए आरक्षित है।



शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2013

Basant panchmi

बसंत कलेंडर पर लिखी तारीख नहीं


बसंत कैलेंडर पर लिखी तारीख नहीं,
न ही यह सूर्य और चंद्रग्रहण की तरह खगोलीय घटना हैँ
बसंत पेड.की डाली पर खिला फूल है, हवा की सरसराहट है,
बच्ची की किलकारी है, चिडियों की चहचहाट है,
पति की प्रतीक्षा है, पत्नी के विरह का स्वर है,
मिलन का राग है, उल्लास का फाग है
बसंत कलेंडर पर लिखी तारीख नहीं।

                                        - satish aliya